देह-सुख : यदि लग्नेश 6, 8, 12 भाव में स्थित हो अशुभ ग्रह के साथ स्थित तो शारीरक सुखों में कमी होती है।
लग्नेश अस्त, नीच अथवा शत्रु राशि में स्थित हो तो जातक बार-बार बीमार होता है।
शुभ ग्रह केन्द्र-त्रिकोण में स्थित हों तो शरीर सुख मिलते हैं।
लग्नेश या चंद्रमा अशुभ प्रभाव में हों या उन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो देह सुखों में कमी आ जाती है.
बली सूर्य और बली चंद्र का होना भी आवश्यक होता है।
रोग के विश्लेषण : लग्न और लग्नेश की क्या स्थिति। कारक ग्रह और उनकी राशि :
फेफ़डों और ह्वदय से संबंधित रोग के लिए हमें चतुर्थ भाव और कर्क राशि पर विचार करना होगा। .
चिकित्सा ज्योतिष के लिए छठे भाव और इसके स्वामी पर विचार करना चाहिए।
रोग का समय : 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं लग्नेश की अंतर्दशा में रोग की उत्पत्ति होती है।
मेष लग्न में मंगल की दशा में बुध की अंतर्दशा के अंतर्गत बीमारियां आती हैं। बुध छठे भाव के स्वामी हैं।
वृषभ लग्न में छठे भाव में शुक्र की मूल त्रिकोण राशि तुला स्थित होती है। शुक्र महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा रोग उत्पन्न होता है। इस लग्न में बृहस्पति एकादशेश होते हैं, जो छठे से छठा भाव होता है।
सभी लग्नों में 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं या अंतर्दशाओं के साथ-साथ लग्नेश की अंतर्दशा में रोग प्रकट होते हैं।
6, 8, 12 भावों में स्थित ग्रह भी उनकी महादशाओं या अंतर्दशाओं में बीमारियों को जन्म देते हैं।
मृत्यु संबंधी मामलों में मारक ग्रहों की दशाओं में रोगों बढ़ जाते है। मारक भावों (2-7) और 8, 12 भावों में स्थित ग्रह अपनी दशा या अंतर्दशा में रोग कारक हो जाता है।
राहु और शनि दो प्रबल कार्मिक ग्रह हैं। अपनी दशा-अंतर्दशाओं में रोग और समस्याओं का कारण बन जाते हैं।
लग्नेश अस्त, नीच अथवा शत्रु राशि में स्थित हो तो जातक बार-बार बीमार होता है।
शुभ ग्रह केन्द्र-त्रिकोण में स्थित हों तो शरीर सुख मिलते हैं।
लग्नेश या चंद्रमा अशुभ प्रभाव में हों या उन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो देह सुखों में कमी आ जाती है.
बली सूर्य और बली चंद्र का होना भी आवश्यक होता है।
रोग के विश्लेषण : लग्न और लग्नेश की क्या स्थिति। कारक ग्रह और उनकी राशि :
फेफ़डों और ह्वदय से संबंधित रोग के लिए हमें चतुर्थ भाव और कर्क राशि पर विचार करना होगा। .
चिकित्सा ज्योतिष के लिए छठे भाव और इसके स्वामी पर विचार करना चाहिए।
रोग का समय : 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं लग्नेश की अंतर्दशा में रोग की उत्पत्ति होती है।
मेष लग्न में मंगल की दशा में बुध की अंतर्दशा के अंतर्गत बीमारियां आती हैं। बुध छठे भाव के स्वामी हैं।
वृषभ लग्न में छठे भाव में शुक्र की मूल त्रिकोण राशि तुला स्थित होती है। शुक्र महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा रोग उत्पन्न होता है। इस लग्न में बृहस्पति एकादशेश होते हैं, जो छठे से छठा भाव होता है।
सभी लग्नों में 6, 8, 12 भावों के स्वामियों की दशाओं या अंतर्दशाओं के साथ-साथ लग्नेश की अंतर्दशा में रोग प्रकट होते हैं।
6, 8, 12 भावों में स्थित ग्रह भी उनकी महादशाओं या अंतर्दशाओं में बीमारियों को जन्म देते हैं।
मृत्यु संबंधी मामलों में मारक ग्रहों की दशाओं में रोगों बढ़ जाते है। मारक भावों (2-7) और 8, 12 भावों में स्थित ग्रह अपनी दशा या अंतर्दशा में रोग कारक हो जाता है।
राहु और शनि दो प्रबल कार्मिक ग्रह हैं। अपनी दशा-अंतर्दशाओं में रोग और समस्याओं का कारण बन जाते हैं।
No comments:
Post a Comment